नई दिल्ली, 14 फरवरी। शहरी विकास मंत्रालय कचरा प्रबंधन के साथ उसका उपयोग देश के विकास को गति देने में कर रहा है। वाराणसी में एनटीपीसी ने हरित ऊर्जा की दिशा में कदम बढ़ाते हुए टारफाइल चारकोल प्लांट शुरू किया है। इस प्लांट से उत्पारित हरित कोयले का उपयोग एनटीपीसी बिजली उत्पादन और अन्य गतिविधियों के लिए कर रही है।
शुक्रवार को केंद्रीय ऊर्जा, आवासन एवं शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल ने वाराणसी पहुंचकर एनटीपीसी विद्युत व्यापार निगम लिमिटेड के टारफाइड चारकोल प्लांट का निरीक्षण किया। इइस प्लांट में वेस्ट-टू चारकोल की सुविधा स्थापित की गई है, जो हर रोज 600 टन ठोस कचरे को चारकोल में परिवर्तित करेगी। यह स्वदेशी रूप से विकसित पहली तकनीक है, जो दहन की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल है और उच्च कैलोरी मूल्य वाले ईंधन में कचरे को बदलती है, जिसे कोयले के साथ सह-दहन किया जा सकता है।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत के विजन को गति देते हुए कचरे से कोयला बनाने वाले देश के पहले हरित कोयला संयंत्र की शुरुआत की थी। संयंत्र में उत्पादित जैव-कोयला मौजूदा पारंपरिक कोयले का एक स्थायी विकल्प माना जाता है जो प्रकृति में प्रदूषण फैलाता है। अब देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह की पहल शुरू करने की योजना है।
उन्होंने कहा कि वाराणसी में कूड़े के ढेर को खत्म कर स्वच्छता मिशन को आगे बढ़ाने की दिशा में सराहनीय पहल की गई है। इस प्लांट से उत्पादित हरित कोयले का उपयोग एनटीपीसी बिजली उत्पादन के लिए कर रही है।
शहरी आवास मंत्री ने हर गतिविधि का बारीकी से किया मुआयना
चारकोल प्लांट के निरीक्षण के दौरान शहरी आवास मंत्री ने कचरे से कोयला बनाने के पूरे प्रोसेस का बारीकी के साथ मुआयना किया कि किस तरह कचरे को क्रेन की मदद से हॉपर में डाला जाता है। कचरे के अंदर मौजूद नमी को प्री-हीटिंग करके हटा कर, फिर बैलिस्टिक सेपरेटर का इस्तेमाल करके कचरे से मिट्टी, लोहा, तांबा और अन्य सामग्री को अलग किया जाता है। सभी कचरे को अलग करने के बाद उसे रिफ्यूज्ड डेरिव्ड फ्यूल (आरडीएफ) प्रक्रिया के तहत पाउडर के रूप में बदल दिया जाता है। कचरे को 250 से 300 डिग्री के तापमान पर थर्मल ट्रीटमेंट दिया जाता है, जिससे कोयले जैसी विशेषताओं वाली छोटी काली राख बनती है। फिर, इसे छलनी से साफ किया जाता है। इसके बाद चारकोल को कुछ मात्रा में बाइंडर और पानी के साथ मिलाकर सुखाया जाता है। अंत में, ग्रीन कोल तैयार होता है।