दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों का इतिहास बेहद पेचीदा और तनावपूर्ण रहा है। दोनों देशों के बीच कई बार युद्ध हो चुके हैं और सीमा पर आए दिन गोलाबारी तथा संघर्ष की खबरें सामने आती रही हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद जो हालात बने हैं उसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है और फिर अमेरिका और अन्य देशों की मध्यस्थता के बाद जो 11 मई 2025 में दोनों देशों ने एक बार फिर से सीजफायर यानी संघर्षविराम पर सहमति जताई, तो यह कदम न केवल सीमा पर शांति बहाल करने की दिशा में अहम माना गया, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में स्थिरता के लिहाज से भी एक सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा गया।
यह सीजफायर समझौता दोनों देशों के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिटरी ऑपरेशंस) के बीच एक संयुक्त बयान के जरिए घोषित किया गया। यह कदम खासकर जम्मू-कश्मीर के नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगातार बढ़ रहे तनाव और आम नागरिकों की जान-माल के नुकसान को रोकने के लिए उठाया गया है।
सीजफायर का सीधा असर उन सीमावर्ती गांवों में देखने को मिलता है जो अकसर गोलाबारी की चपेट में आ जाते हैं। वहां के लोग अब आशा कर रहे हैं कि वे सामान्य जीवन जी पाएंगे, खेतों में काम कर पाएंगे और उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में कोई बाधा नहीं आएगी। इससे दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया को भी बल मिल सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के सीजफायर समझौते तभी कारगर हो सकते हैं जब दोनों देश राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएं और बातचीत को आगे बढ़ाने का प्रयास करें। पिछले अनुभवों से यह भी स्पष्ट है कि कई बार ऐसे समझौते कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं और जमीन पर उसका पालन नहीं हो पाता।
भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और किसी भी प्रकार का सैन्य टकराव न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन सकता है। ऐसे में यह सीजफायर समझौता एक महत्वपूर्ण अवसर है जिसे दोनों देशों को संवाद, सहयोग और आपसी समझ के जरिये आगे बढ़ाना चाहिए।
अंततः, यह कहना गलत नहीं होगा कि शांति का कोई विकल्प नहीं होता। संघर्षविराम की यह पहल अगर ईमानदारी और स्थायित्व के साथ लागू की जाए, तो यह भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नए युग की शुरुआत कर सकती है, जिसमें युद्ध नहीं, बल्कि सहयोग और समृद्धि की बात हो।