प्रस्तुति: राजेश रमोला
कर्मचारी संगठन गढ़वाल मंडल विकास निगम
उत्तराखंड : देव भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं, यहाँ गर्मियों के मौसम में चार धाम यात्रा (केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री), कावड़ यात्रा (हरिद्वार और ऋषिकेश) के लिए यात्री आते हैं तो सर्दियों के मौसम में ओली, चोपता और चकरोता जैसे बर्फ से ढके पहाड़ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। राज्य में अधिकांश हिस्सा पहाड़ी होने के कारण यहाँ पर खेती करना भी बहुत कठिन कार्य है। इसी कारण उत्तराखंड के अधिकतर निवासी रोजगार के लिए पर्यटन पर ही निर्भर रहते हैं इसी कारण उत्तराखंड में यात्रा और पर्यटन को और अधिक लोकप्रिय और आकर्षक बनाने, देश विदेश में उत्तराखंड राज्य के पर्यटक स्थलों का प्रचार करने और अतिथि देवो भव: को ध्यान में रखते हुए 31 मार्च 1976 को गढ़वाल मंडल विकास निगम की स्थापना की गयी। आज के समय में निगम के पास 90 बंगले 35 गैस एजेंसी 4 पेट्रोल पंप औली रोपवे एवं निर्माण इकाई यात्रा परिवहन बेडा आदि हैं और वर्तमान मे लगभग 980 कर्मचारी हैं। जिनका वेतन निगम दवारा भुगतान कियाजाता है 450 के लगभग आउटशोरष के दवारा कारयरत है,जो इस क्षेत्र की क्षमता को साबित करता है। पहाड़ी क्षेत्र से लगातार काम की तलाश में लोग मैदानी इलाको की ओर पलायन करते हैं, इस पलायन को रोकना और पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाले उत्पाद जैसे माल्टा, बुरांश सेब आदि की पैदावार के लिए स्थानीय लोगों को उत्साहित करना भी गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल विकास निगम का एक उद्देश्य रहा है।
निगम के बंगलो को पीपीपी मोड़ पर देने के बजाय सरकार को ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे कि पर्यटकों की पहुंच उन बंगलो तक भी हो सके जहां पर अभी कम पर्यटक पहुंच पाते हैं। क्योकि यदि एक गैरसरकारी व्यक्ति इन बंगलो को किराये पर लेने के बाद मुनाफा कमा सकता है तो फिर सभी जरुरी सामान होने के बाद भी सरकारी तंत्र क्यों घाटे में जाता है। कि उत्तराखंड राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में असीम सम्भावनाये हैं, गढ़वाल मंडल में केवल यात्रा के समय ही पर्यटक नहीं आते बल्कि गढ़वाल मंडल के पहाड़ो मे इतनी क्षमताएँ हैं कि वह सालभर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती रहे। लेकिन इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह इन स्थानों को विकसित करे जैसे कि निगम के पास अपनी बसे हैं यदि वह यात्रियों को ऋषिकेश के रास्ते केदारनाथ लाती है तो वापसी में कोटद्वार के रास्ते का इस्तेमाल करे, जिससे कि उन जगहों को भी विकसित किया जा सके जो अभी पर्यटकों की जानकारी में नहीं हैं, ऐसा करने से राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में और विस्तार होगा और ऐसे इलाको तक भी रोजगार पहुंच पायेगा जहां पर अभी पर्यटकों की आवाजाही कम है और यदि सरकार कुछ बंगलो को किराये पर देना भी चाहती है तो सुनिश्चित करें कि इन बंगलो को केवल स्थानीय लोग ही किराये पर ले सकें। पर्यटन के क्षेत्र में कोई नीति बने ताकि राज्य में पर्यटन को और भी बेहतर बनाया जा सके।
व यात्रा के समय पर्यटकों की कोई समस्या नहीं होती है लेकिन ऑफ सीज़न में पर्यटकों की कमी के कारण निगम को प्राइवेट होटलों की अपेक्षा कम पर्यटक मिल पाते हैं। क्योंकि ऑफ सीज़न में प्राइवेट होटल अपना किराया बहुत ही कम कर देते हैं जबकि निगम एक निश्चित सीमा तक ही किराया कम कर सकता है। वर्तमान में गढ़वाल मंडल विकास निगम और कुमाऊँ मंडल निगम अलग अलग कार्य करते हैं। जबकि सरकार को इन दोनों निगमों को एक ही कर देना चाहिए क्योंकि गढ़वाल मंडल में अधिकांश धार्मिक स्थल हैं और कुमाऊँ मंडल में पिकनिक स्पॉट अधिक होने के कारण वहां सालभर पर्यटक आते रहते हैं। यदि इन दोनों निगमों को एक कर पर्यटन परिषद में शामिल कर दिया जाये तो इन निगमों की समस्या का समाधान काफी हद तक हो सकता है।
कि राज्य के गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल में पलायन पहले से ही बड़ी समस्या रही है, जनता को उम्मीद थी कि नया राज्य बनने के बाद इस समस्या का समाधान होगा लेकिन पलायन की समस्या आज ओर बढ़ गई है, राज्य में पलायन का बड़ा कारण रोजगार है, उत्तराखंड गठन के बाद राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में पूंजीवादी ताकतों का दबदबा लगातार बढ़ा है। हम देखते हैं सरकार ने चारधाम यात्रा के लिए हेलीकाप्टर सेवा शुरू की पर्यटकों के लिए, पूंजीपतियों के द्वारा बड़े-बड़े होटल इन क्षेत्रो मे बने लेकिन सवाल यह है कि क्या सच में स्थानीय लोगो को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार मिल पाया? नहीं।
आज सरकार की नीति है कि सरकार के अधीन सभी उपक्रमों को प्राइवेट हाथो में दे दे। गढ़वाल मंडल विकास निगम के साथ भी सरकार की यही नीति है, उत्तराखंड सरकार जीएमवीएन एवं केएमवीएन के बंगलो को प्राइवेट हाथो में देने की बात कर रही। लेकिन यह केवल स्थानीय लोगो को मिले ऐसा तय नहीं है और वर्तमान में इन बंगलों में जो कर्मचारी कार्यरत हैं, बंगलों को प्राइवेट हाथो में दिए जाने के बाद इन कर्मचारियों का क्या होगा, सीधी बात है जो मालिक होगा वह अपने अनुसार कर्मचारी नियुक्त करेगा। सरकारी उपक्रम का कार्य केवल मुनाफा कमाना नहीं होता बल्कि सार्वजानिक कल्याण भी होता है गढ़वाल मंडल विकास निगम का कार्य भी उत्तराखंड पर्यटन, उत्पाद संस्कृति अदि को देश विदेश में विख्यात करना है। इसलिए समय समय पर सरकार के द्वारा बंगलों को पीपीपी मोड पर देने के बजाये पर्यटन निगम जीएमवीएन /के एम वी एन का , उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद में विलय करते हुए परिषद के द्वारा राज्य हित में संचालन किया जाना चाहिए !